बच्चों की दृष्टि के लिये चेतावनी लक्षण
नवजात के लिये
आप अपने नवजात की आंखें पानीदार या लटकती हुई अवश्य पायेंगे। ग्लूकोमा या मोतियाबिंद का पारिवारिक इतिहास आपके बच्चों की आंखों में दिखायी पड़ सकता है। सुनिश्चित हो लें कि वह अपनी पलकें अधिक बार न झपकाता हो। नवजात को आंखों के विशेषज्ञ के पास ले जायें, जो नवजात की आंखों को जांच कर किसी तंत्रिकीय समस्या को पता लगा सके।
छोटे बच्चों के लिये
आंखों के भैंगेपन या देर से आंखों द्वारा देखने को ध्यान से जांचे। घूमती वस्तुओं के साथ नज़रों को घुमाने पर ध्यान दें। ध्यान दे यदि वह बिना किसी कारण आंखों को घुमाता हो। आप घूमने वाली वस्तु के माध्यम से इस बात का भी पता लगा सकते है कि वह उन्हें देखता या भ्रमित होता है। अगर बहुत अधिक कीचड़ आता हो या सामान्य रोशनी असह्य हो तो तुरंत किसी डॉक्टर के पास जाकर जांच करायें।
स्कूली बच्चों के लिये
अगर स्कूली बच्चा बोर्ड को नहीं देख पाता या टेलीविज़न को तिरछा देखता है तो तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है। अगर वे कॉपी या पुस्तक सामान्य से अधिक नज़दीकी से देखते हो तो आपको उसकी दृष्टि के बारे में पता लगाना चाहिये। टेलीविज़न के बहुत अधिक नज़दीक बैठना या रात में गिर पड़ना भी आंखों की समस्या को प्रदर्शित करता है। वे आसपास में रूचि कम कर देते है या पढ़ाई बंद कर देते हैं। इन परिस्थितियों को अंदेखा नही करना चाहिये।
बचपन में आंखों की देखभाल के लिये सलाह
- आहार: एक संतुलित आहार जिसमें लाल और हरी पत्त्तेदार सब्जियां जैसे पालक, गाजर, चुकंदर और पीले फल जिसमें शामिल हैं आम, पपीता जो कैरोटीन (विटामिन ए से युक्त) से भरपूर है संतानों के लिये बनाया गया है।
- टीवी देखना: एक अच्छे रोशनी वाले कमरे में टीवी को 3.5 मीटर या उससे अधिक दूरी से देखना चाहिये।
- कम्प्यूटर का उपयोग: बच्चों को इसका उपयोग विवेकपूर्ण ढ़ंग से करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये जिससे आंखें थकें नहीं। कम्प्यूटर की स्क्रीन आंख के स्तर से नीचे होना चाहिये। यह आंखों को पूरा झपकने देती है जिससे सूखेपन और आंखों के थकान के लक्षण को कम किया जा सकता है। अत: बच्चों को अपनी आंखें अवश्य झपकाना और निश्चित अंतराल पर आंखों को आराम देना चाहिये।
- रोशनी: किताबों को पीछे से आने वाली रोशनी में 14 इंच की दूरी से पढ़ना चाहिये।
- अगर संतान किसी खेल में सहभागिता करता है तो उसे आंखों की रक्षा करने वाले चश्मों का प्रयोग करना चाहिये।
- स्नान करते समय क्लोरीन और अन्य रसायन से आंखों को बचाने के लिये सूरक्षात्मक चश्मोंको प्रयोग करें।
- स्कूली बच्चों में एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस पाया जाता है इससे बचने के लिये बच्चों को बार आंख पोछने से मना करना चाहिये।
- नवजात की आंखों में काजल लगाना और गुलाब्बजल से धुलना हानिकारक हो सकता है।
- नवजात और छोटे बच्चों को बहुत ही तेज़ और एकदृष्टि वाले खेलों का उपयोग करना उन्हें निराश करेगा।
- इलेक्ट्रोनिक यंत्रों पर गेम खेलना कम करें: सुनिश्चित करें की वे लम्बे समय तक खेल यंत्रों पर खेल न खेलें। वीडियो और पिक्चर भी इसमें शामिल हैं।
- नियमित अन्तराल: पढ़ने, कम्प्यूटर पर कार्य करने और ऐसे ही अन्य आंखों से होने वाले कार्यों के लिये नियमित अंतर दिया जाना चाहिये। उन्हें आंखों पर पानी के छिटें डालने की आदत डालनी चाहिये।
- दूर से वस्तुओं को देखना: अपने आराम के समय उन्हें वस्तुओं को दूर से देखना चाहिये। यह उनकी देखने की क्षमता को और अधिक बढ़ायेगा।
- खुली जगहों के खेलों को खेलना: बच्चों को खुले मैदानों के खेल खेलना चाहिये। इससे उनका पर्याप्त व्यायाम होगा और दृष्टि पर दबाव कम होगा।
- उन्हें पर्याप्त रोशनी वाली जगहों पर पढ़ाई करने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
- खेल यंत्रों या कम्प्यूटर की स्क्रीन को आंखो से दूरी पर रखें, ये स्क्रीने कम से कम 40 सेंटीमीटर की दूरी पर होना चाहिय्ये।
- आंखों को पर्याप्त आराम दे और उचित नींद के साथ ये दोनों ही आपकी आंखों की शक्ति को बढ़ायेंगे।
- किसी समस्या के होने पर या नियमित जांच के लिये आंख रोग विशेषज्ञ से मिलते रहना चाहिये। वह समय पूर्व आपके लिये उचित समाधान उपलब्ध करायेगा।
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